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रहस्यमाई चश्मा भाग - 3





मंगलम चौधरी ने अपने धरभंगा आने की सुचना अपनी राईयात कारिंदों को काफी दिन पूर्व भेज दी थी अतः सुबह से ही साहब के स्वागत में स्टेशन पर अपनी अपनी छमता में खड़े थे।।


रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार से चलती धीरे धीरे दरभंगा की और बढ़ती रही और दरभंगा स्टेशन भी आ गया मंगलम चौधरी रेलगाडी के दरबाजे के बाहर निकले ज्यो ही बाहर आये स्टेशन पर इंतज़ार कर रही उनकी राईयात के लोग बड़े ही ख़ुशी के साथ झूमते बोले मालिक आ गए मालिक को बहुत दिन बाद जन्म भूमि की याद आयी।


 सुखिया ने कहा मालिक पहले से दुबर नज़र आई रहे है तपाक से मंगरु ने कहा जनतेव नहीं मालिक का लम्बा कारोबार है दौड़ भाग बहुत करतेंन खाय पिए के कौनो एक नियम नहीं रहत बराबर पनि फेरवट होत रहत है सो तानी मालिक क सेहत हरकल लागत है फिर मगरू बड़े ताव से बोलिन् सुखिया ते नादान क नादान ही रहिगे बड़े लोगन का बात है इन्हें कबो कौनी जिनगी में कमी नाही रहत सुखिया और मंगरु की वार्ता लाप चल ही रही थी की मंगलम चौधरी की कड़क आवाज गूंजी क्यों भाई मगरू सुखिया रमई कैसे हो तीनो याचना और भक्ति भाव से बोले मालिक आपके आशीर्वाद की कौनो कमी नाही है आपकी कृपा बनी रहे मालिक हमरा भाग्य यही है।।


मंगलम चौधरी तुरंत सिंद्धांत की और मुखातिब हो बोले सिद्धांत ट्रेन के डिब्बे में मेरे साथ एक घायल नौजवान है उसे तुरंत उतारो ट्रेन खुलने वाली है वह बेहोश है अतः आराम से उतारना सिद्धान्त तुरंत दो तीन आदमियो के साथ रेल गाडी के डिब्बे में गया और गम्भीर अवस्था में पड़े नौजवान को रेल डिब्बे से बाहर लेकर आया ज्यो ही सिद्धान्त घायल नौजवान को लेकर बाहर आया!


 मंगलम चौधरी ने आदेशात्मक भाव में कहा सिद्धांत फौरन इस नौजवान को शहर के सर्वोत्तम अस्पताल में चिकित्सा हे ले चलो सिद्धान्त ने पूछना चाहअ
 चाहा सर ये कौन है कैसे आपके साथ मंगलम् चौधरी ने आदेशात्म लहजे में कहा नो क़स्चन हरी अप सब जल्दी जल्दी उस नौजवान के साथ हरदीप अस्पताल की और चल दिये हरदीप अस्पताल शहर का सबसे बड़ा अस्पताल था लगभग दस मिनट के अंतराल में सभी हरदीप अस्पताल पहुँच गए डॉ रणदीप झा को जब पता चला की मंगलम चौधरी मैथिल स्वाभिमान के पहचान और स्वाभिमान स्वयं उनके अस्पताल पर आये है तो ख़ुशी और संसय के मध्य वह स्वयं दुविधा में पड़ गए और उनको समझ में नहीं आ रहा था की आखिर बात क्या है इसी उधेड़ बुन में डा रणदीप झा अपने अस्पताल के बाहर आये जब तक कुछ समझ पाते तब तक मंगलम चौधरी की कड़कती आवाज शांत माहौल में गुजने लगी बेटा रणदीप किसी भी कीमत में इस नौजवान की जान बचनी चाहिए और अभी कोई सवाल मत करना।।


डॉ रणदीप ने उस नौजवान को देखा उसकी शुक्ष्म जांच की और बोला चाचा जी इसके शरीर से खून बहुत निकल चूका है प्लस और हार्ट बीट भी अब अंतिम दौर में है अतः एक तो इसे अविलम्ब खून की आवश्यकता है आप व्यवस्था करे और इसके बाद भी इसके जीवन के बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता भगवन ही मालिक है मंगलम चौधरी लगभग चीखते आवाज़ में गुर्राते हुये बोले डॉ रणदीप आप मुझे चाचा कहते हो तो समझो यह तुम्हारा भाई है मेरे बेटे जैसा है किसी भी कीमत पर इस नौजवान का जिन्दा रहना जरुरी है चाहे भगवान् को ही बुलाना पड़े हमारे इतने आदमी है इनका खून नौजवान के खून से मैच कराओ यदि इनमे से किसी का खून मैच नहीं करता तो मेरा खून मैच कराओ मेरे खून का एक एक कतरा ले लो मगर इस नौजवान को बचाओ।


डॉ रणदीप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योकि उसने सदैव मंगलम चाचा में एक दबंग जमीदार के तानाशाह का रूप देखा था इस नौजवान में क्या खास बात है की पथ्थर फौलाद को मोम बना दिया या कौन सी ऐसी घटना ने मंगलम चाचा को इतना भावुक बना दिया।

खैर जो भी हो अब उस नौजवान को बचाना डॉ रणदीप के जीवन और चिकित्सीय योग्यता की अनिवार्यता और चुनौती बन चुकी थी। डॉ रणदीप ने आनन् फानन अपने अस्पताल के विशेष चिकित्सा कक्ष में लाकर चिकित्सा प्रारम्भ किया।।


इधर शुभा बेटे के इंतज़ार में एक एक पल गुज़ार रही थी शाम को रात्रि को नौ बज चुके थे बेटा अभी लौट कर नहीं आया था उनका मन उदास और किसी अनजानी अप्रिय स्थिति से घबरा भी रहा था बार बार वह अपनी झोपडी से बाहर निकलती और आने जाने वालों से पूछती भैया बाबू सुयस को कही देखा है!




 कोई नहीं बता पता जब किसी ने देखा होता तो बताता फिर निराश शुभा अपनी झोपड़ी में निराश आकर बैठ जाती परन्तु उनका मन नहीं लगता बेचैन हो पुनः बाहर निकल कर आने जाने वाले राहगिर से पूछती एक तो कस्बे की बात और मध्य रात्रि के साढ़े बारह बज रहे थे राह भी वीरान सुनसान हो चुकी थी फिर भी शुभा को उम्मीद थी की शायद कोई भगवान् बनकर उसके सुयस के विषय में बता दे।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी




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2 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:35 AM

Awesome part

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KALPANA SINHA

05-Sep-2023 11:58 AM

Awesome part

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